DLF Business Case Study | कैसे एक आम भारतीय ने बना दी ₹2,00,000 करोड़ की Company ?

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DLF Business Case Study: बीजेपी ने मोदी जी को बनाया या मोदी जी ने बीजेपी को क्या पता वैसे ही गुड़गांव की वजह से डीएलएफ है या डीएलएफ की वजह से गुड़गांव पता नहीं जानेंगे। आज की केस स्टडी गुड़गांव के रियल स्टेट के कुछ किस्से सुनिए। अभी कुछ दिनों पहले गुड़गांव का एक प्रोजेक्ट था पिवाना वेस्ट करके, वहाँ पर 5600 करोड़ के फ्लैट्स बिके, मात्र 3 दिन में। इससे पहले इसी प्रोजेक्ट का प्रवाना साउथ लच हुआ था, जनवरी में 4 महीने पहले वहाँ 7200 करोड़ के फ्लैट्स बिके, मात्र 3 दिन में। डीएलएफ का ही एक प्रोजेक्ट है कैमलिया, जहाँ पर 100-100 सवा करोड़ के फ्लैट्स बिक रहे हैं।

Contents
मार्केट वैल्यू 2 लाख करोड़ से ज्यादा: DLF Business Case Studyग्राउंड इंजीनियरिंग कोर्स के लिए फॉर्मचौधरी राघवेंद्र सिंह बेटी इंदिरा सिंह से उनकी शादी हुईगुड़गांव की ज़मीन कैसे ख़रीदी?आर्मी बैकग्राउंड, विलेजर से अटैचमेंट“टेंशन मत ले, तू लाख रुपये मुझे वापस दे दे, मैं तेरे को इस पर ब्याज दे दूंगा”20 अप्रैल 1981 को पहला लाइसेंस मिला1981 में 40 एकड़ के साथ…1984 में इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बनेजो जमीन 600 गज पर जा रही थी, वो लाइसेंस आने पर ₹2000 गज पर जाने लगीगुड़गांव को कैसे प्रसिद्ध करें?फॉर्च्यून 500 की 250 से ज्यादा कॉर्पोरेट आज गुड़गांव मेंहफीज कांट्रैक्टर ने 10 साल तक उनकी बिल्डिंग्स बनाई थींडीएलएफ की मार्केट वैल्यू अब 2 लाख करोड़ है

रेजिडेंशियल विश्व की आधी से ज्यादा फॉर्च्यून 500 कंपनियों की ऑफिस गुड़गांव में हैं। यहाँ 10,000 से ज्यादा स्टार्टअप रजिस्टर्ड हैं, और यही गुड़गांव 30 साल पहले एक ऐसा गांव था, जहाँ पर रात को जाने में लोग डरते थे, बंजर जमीनें थीं, दिल्ली की बॉर्डर से बाहर अगर जाना होता तो टैक्सी रिक्शा जाते नहीं थे, और कोई जाता था तो डबल पैसे लेता था। तो जहाँ आज ये 100-100 करोड़ के फ्लैट्स बिक रहे हैं, न वहाँ एक जमाने में 40000 एकड़ के भाव थे, ₹ 600 गज में जमीनें बिकी हैं। इंडिया में जो बीपीओ सेक्टर का विकराल रूप देख रहे हैं, लाखों लोग लगे हुए हैं, बड़ी-बड़ी कंपनियां हैं, इसकी शुरुआत भी गुड़गांव से हुई थी, और डीएलएफ से हुई थी।

मार्केट वैल्यू 2 लाख करोड़ से ज्यादा: DLF Business Case Study

गुड़गांव कैसे बना सिटी ऑफ कॉरपोरेट, सिटी ऑफ स्टार्टअप, और मिलेनियम सिटी, और ये सब कैसे हुआ, इन सबको करने के लिए सिर्फ एक ही बंदा काफी था। उस बंदे का नाम था कुशल पाल सिंह, यानी केपी। सिंह केपी सिंह ने डीएलएफ को इंडिया का सबसे बड़ा रियल स्टेट डेवलपर बना दिया, जिसके आज मार्केट वैल्यू 2 लाख करोड़ से ज्यादा है। डीएलएफ को आज इस मुकाम तक पहुंचाने में थोड़ा सा पॉलिटिकल सपोर्ट, डीएलएफ को आज इस मुकाम तक पहुंचाने में थोड़ा सा राजनीतिक समर्थन भी लगा और एक व्यक्ति जो इनके साथ थे, जिन्होंने डीएलएफ को उत्पन्न करने में आरंभिक सहायता की थी, वे राजीव गांधी थे। और जितने कहानियां आपने सुनी थीं रॉबर्ट वाड्रा के ज़मीन के, वे सभी डीएलएफ से संबंधित थे। इसलिए आज हम गुड़गांव की केस स्टडी में देखेंगे कि गुड़गांव कैसे बना। कैसे एक छोटे से यूपी के शहर से निकले व्यक्ति आज विश्व के 100 सबसे धनी लोगों में शामिल हैं और भारत के शीर्ष 10 धनी लोगों में शामिल हैं।

कुशल पाल सिंह, अर्थात् केपी सिंह जी, यह भाई साहब यूपी के बुलंद शहर से आते हैं। उनके पिताजी वकील थे और माताजी घरेलू महिला थीं। जीवन सामान्य था। फिर उनके एक दोस्त ने बिना बताए एक फॉर्म भर दिया कि लंदन में हो रहा है।

ग्राउंड इंजीनियरिंग कोर्स के लिए फॉर्म

ग्राउंड इंजीनियरिंग कोर्स के लिए फॉर्म भरते भरते उनका भी भर गया। वे चयनित हो गए। अब अनजाने में लंदन जाने का मौका मिला। घरवालों ने कहा कि बच्चे का भविष्य सुधर जाएगा। पैसे जोड़े भेज दिया। अब पढ़ाई में तो औसत थे, लेकिन स्पोर्ट्स में उत्कृष्ट थे। वह वॉल टेनिस और पोलो खेलते थे। उस समय उनकी एक गर्लफ्रेंड बन गई, जूली, जो यूपी के बुलंद शहर के छोटे से गांव की थी। उसने उन्हें सभी आदतें सिखाई और उन्हें पूर्ण जेन्टिलमैन बना दिया। जूली ने इंग्लैंड में शादी करने की सरल योजना बनाई। लंदन में ही सेटल हो गए। काम लेकिन भाई फिर गुड़गांव कौन बनाता, यह भाग्य ने थोड़ी सी उलझन दी।

वहाँ उन्होंने पोलो खेलते समय टकरा गए थे, जो ब्रिगेडियर मोहिंद्र सिंह वडालिया थे, वे भारतीय सेना के एक बड़े अफसर थे। उन्होंने कहा, “जेंटलमैन, तुम भारत के हो यार, 6 फुट के लंबे और चौड़े, खूबसूरत नौजवान।” अरे, आर्मी तुम्हारा वेट कर रही है, तुम क्या कर रहे हो?” फिर बहुत सारी घटनाएं हुईं, और उनका मन नहीं था कि क्या करें, लेकिन फिर भी कुछ आगे बढ़े। पीछे, ऊपर, नीचे, भाग्य के आगे कोई नहीं जीतता। अंततः, 23 साल की उम्र में ये भारत आए और इंडियन आर्मी में जुड़ गए। उस समय आर्मी का नियम था कि विदेशी से शादी नहीं की जा सकती थी, तो उन्होंने जूली को बोला, “बाय, आर्मी को बोला हाय।” आर्मी में भैया बढ़िया परफॉर्म कर रहे थे, और बढ़िया स्पोर्ट्स खेल रहे थे।

चौधरी राघवेंद्र सिंह बेटी इंदिरा सिंह से उनकी शादी हुई

आर्मी में एक कर्नल भी थे, चौधरी राघवेंद्र सिंह, जिनकी बेटी इंदिरा सिंह से उनकी शादी हुई। आर्मी के सीनियर ऑफिसर ने रिश्ता ढूंढा, और उन्होंने ही इंदिरा सिंह से शादी करवाई। इंडियन आर्मी में जोड़ने के 8 साल बाद, 1961 में उनके ससुर जी ने कहा, “देखो जी, मुझे दो बेटियाँ हैं, बेटा तो है ही नहीं, लेकिन तुम तो उनके समान हो, आओ और अपना छोटा सा परिवारिक व्यापार शुरू करो।”

उसे जॉइन कर लो वह जो छोटा सा परिवारिक व्यवसाय है, उसका नाम था “दिल्ली लैंड एंड फाइनेंस लिमिटेड” जिसे शॉर्ट में डीएलएफ कहा जाता था। डीएलएफ में उन्होंने 1961 में शामिल हो लिया था, लेकिन यह कंपनी 1946 में बनी थी। आजादी से एक साल पहले, उनके ससुराल चौधरी राघवेंद्र सिंह ने कंपनी शुरू की थी। उनका मकसद यह था कि उन्हें यह लगा कि भारत में बंटवारा होगा और लोगों को ज्यादा जगह की आवश्यकता होगी। इसलिए वह ने एक भूमि कंपनी शुरू की थी। उन्होंने 1946 में अपनी कंपनी शुरू की, और पहला प्रोजेक्ट जो उन्होंने लांच किया था, वह था 1949 में “कृष्णानगर”। उसके बाद “पंजाबी बाग”, “रजौरी गार्डन”, “ग्रेटर कैलाश मॉडल टाउन” जैसी कुल 22 से अधिक कॉलोनियाँ डीएलएफ ने उस समय बनाई थी।

गुड़गांव की ज़मीन कैसे ख़रीदी?

जब हमारे केपी सिंह जी सीन में प्रवेश कर गए, तो एक नियम लागू हो गया था। दिल्ली में डीडीए (दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी) गठित हो गया था और उन्होंने नियम बनाया कि दिल्ली के विकास के लिए सरकार ही निर्णय लेगी। प्राइवेट प्लेयर्स को जमीन काटने की अनुमति नहीं होगी। अब उन्हें जो काम चल रहा था, वह समाप्त हो गया। जो जमीन उनके पास थी, उस पर नई अवस्थाओं का निर्माण नहीं किया जा सकेगा। इसलिए, जो काम कॉलोनियों की निर्माण का था, वह भी बंद हो गया। 1963 में इन्होंने सोचा कि सभी काम बंद हो गए हैं, तो अब क्या करें? उन्होंने अपने कामों को विविध बनाने का निर्णय लिया, और उन्होंने एक मोटर फैक्ट्री शुरू की।

एक व्यक्ति ने मशीनों का काम किया, लेकिन वह विभिन्न कार्यों में असफल रहे। उन्होंने कहा, “मेरे लिए भाग्य में कृषि का ही काम लिखा है।” वे उस क्षेत्र की ओर मोड़ लिए, लेकिन इस बीच उन्होंने व्यापार करने का अच्छा अनुभव प्राप्त किया। अब हम आते हैं मुख्य कहानी पर, जिस पर आप सभी को बड़ी चाह का इंतजार है कि कब और कैसे गुड़गांव बना। मैं आपको बताने जा रहा हूं कि वह किस रोचक तरीके से जमीन खरीदी है, जिसे आपको सुनकर आश्चर्य होगा कि ऐसा भी हो सकता है।

उन्होंने कहा, “भैया, गुड़गांव की ज़मीन कैसे ख़रीदी?” मन से लाइकर कहा लालच मिल गया, पर क्या करें? यहाँ कॉलोनी नहीं बना सकते, दिल्ली के अंदर कोई जगह नहीं है। दिल्ली से बाहर जाना पड़ेगा। 1980 के आसपास, इंदिरा गांधी हवाई अड्डे का विस्तार होने वाला है। विस्तार कहाँ होगा? जब विस्तार होगा, तो जो रोड जयपुर से आती है, उसका एलिया गुड़गांव को शायद फायदा होगा। इसलिए वहाँ कुछ काम किया जा सकता है। उस समय, गुड़गांव एक बंजर ज़मीन थी।

आर्मी बैकग्राउंड, विलेजर से अटैचमेंट

वह भूतिया शहर बहुत अजीब लगता था। वहाँ सिर्फ पेड़ ही पेड़ और जंगल ही जंगल था। कोई भी नहीं समझ पा रहा था कि यहाँ क्या किया जाए। उस समय किसी के दिमाग में भी यह नहीं था कि इस जगह पर एक बिल्डर कुछ बनाएगा। वहाँ कोई नहीं रहने आएगा, जगह कितनी भी बंजर हो, लेकिन किसान से जमीन खरीदना बड़ी बात होगी। किसान की ज़मीन पर पूरा विश्वास होता है। उसे अपनी पीढ़ियों से एमोशनल अटैचमेंट होती है कि “यह मेरी माँ है, मैं इसे नहीं बेचूंगा।” इस समय, उनका दो बैकग्राउंड काम में आया। एक तो उनका गाँव का बैकग्राउंड था, और वे खुद भी गाँव से थे। अब वे लंदन में जेंटलमैन बन गए थे, लेकिन उनका गाँव का जज्बा उनके अंदर ही बना रहता था।

ये खुद जाट थे और वह एरिया मेजॉरिटी जाटों के पास था। दूसरी बात, भाई साहब ये आर्मी बैकग्राउंड से थे। हर गांव में हर मकान में कोई ना कोई आर्मी में या तो गया हुआ था या जाने की तैयारी कर रहा था। तो इनका विलेजर से अटैचमेंट बहुत बढ़िया हो गया। साहब ने जमीन एक्वायर करने के लिए क्या किया? विलेजर से रिलेशन बनाए और ऐसे रिलेशन बनाए कि साहब किसी की शादी हो रही गांव में तो दहेज भी दिया, किसी के बच्चे का स्कूल में एडमिशन भी कराया, किसी का अस्पताल में इलाज भी करवाया, किसी की लड़की देखने भी गए, और हर तरह की चीजें। कभी तिय की बैठक में जाना है तो भैया वहां भी गए, तो गांव वालों के हर सुख में दुख में राजी में बेराजी में ये शामिल रहे और गांव वालों का इनका एक रिश्ता सा बन गया।

“टेंशन मत ले, तू लाख रुपये मुझे वापस दे दे, मैं तेरे को इस पर ब्याज दे दूंगा”

अब उस समय जो एक इंटरेस्टिंग तरीके से इनके ससुर साहब भी काम करते थे, वही तरीका इन्होंने यहां पर अप्लाई किया। ये किसानों को क्या कहते थे? एक किसान है, उसको कहा कि भया मैंने आपसे आपकी जमीन एक बीघा ले ली है। ठीक है, एक बीघा जमीन के लिए पैसे मान लो, एक लाख रुपये दिया। अब उस किसान कटे, “तू लाख रुपये करेगा क्या?” बोले भाई साहब, “पता ही नहीं।” बोले, “टेंशन मत ले, तू लाख रुपये मुझे वापस दे दे, मैं तेरे को इस पर ब्याज दे दूंगा।”

ये किसान ने कहा, “ठीक है भाई साहब, आप ब्याज दे देना, मुझे आप पर भरोसा है। उसी एक लाख से लेकर दूसरे किसान कई तू ले ले जमीन। तू जमीन दे दी तू क्या करेगा? एक लाख का पता नहीं। तू मुझे ही वापस दे दे। पैसे ब्याज दे दूंगा। तेरे को तो बेसिकली बिना पैसे के बिना जेब में एक पैसा हुए।”

एक-एक किसान की जमीन ली, और जो पैसे लिए उसी में इन्वेस्ट किया। इनके महीने की 1 तारीख से 6 तारीख के बीच में गांव में जीभ आती थी। जिस जिस के पैसे लगे हुए थे, सबको मंथली पैसा बांट के जाती थी। तो गांव वालों में ट्रस्ट भी हो गया, ये आदमी बढ़िया है, और इन्होंने बिना पैसे इतना बड़ा लैंड एक्वायर भी कर लिया।

20 अप्रैल 1981 को पहला लाइसेंस मिला

अब यहां पर आते हैं इंटरेस्टिंग मोड प पी, जिससे डीएलएफ डीएलएफ बना। एक बार एक चिलचिलाती धूप में, ये ग्रामीणों का पूरा झुंड बना हुआ। केप सिंह बीच में बैठ के बातचीत कर रहे, इसी दौरान एक जीभ रुकी, ड्राइवर आया, “सब पानी पिलाओ, पानी पिलाया गया”।

तो जीब में एक व्यक्ति बैठा था, उस व्यक्ति ने कहा, “भाई, कौन एक व्यक्ति थी बंजर जमीन में क्या हो रहा है?” ये तो इसने बताया, “भैया, मैं रियल स्टेट का बंदा हूं, जमीन की बातचीत चल रही है। यहां को डेवलप करेंगे।” तो उस व्यक्ति ने कहा, “तो इंटरेस्टिंग आदमी लग रहा है।”

वह उसका काम क्या है, तो उसने कहा कि आप आकर मुझसे मिलें। वह राजीव गांधी थे। उनके तब प्रधानमंत्री नहीं बने थे, लेकिन उनकी मां प्रधानमंत्री थी। तो अगर आप प्रधानमंत्री के बेटे से वन-टू-वन बातचीत कर रहे हैं, तो जब केपी सिंह को मौका मिला, तो वह उनसे दो-तीन घंटे बातचीत की और पूरा विजन साझा किया कि मैं इसे एक बड़े प्रोजेक्ट के रूप में कैसे देखता हूं। राजीव गांधी ने कहा, “ठीक है, हम सब आपकी मदद करेंगे, जो भी संभव हो।” अंततः, 20 अप्रैल 1981 को, उन्हें इस पर पहला लाइसेंस मिला, 40 एकड़ भूमि के विकास के लिए। अब तक वे क्या काम कर रहे थे? वे वास्तु व्यापार कर रहे थे, जमीन खरीदते थे और उसे विकते थे।

1981 में 40 एकड़ के साथ…

भूमि के नीचे बिक गई इस बार की बार नहीं, इसे विकसित करके ही बेचेंगे, इट वाज द फर्स्ट प्रोजेक्ट ऑफ डीएलएफ कहा उन्होंने। फिर उन्होंने कहा, “एक हाई राइज आवासीय प्रोजेक्ट को 11 एकड़ में बनाया जाएगा,” और उस समय का प्रोजेक्ट नाम था ‘सिल्वर ओक 1982’। 1982 में, उन्होंने एक प्रोजेक्ट विकसित करने का काम शुरू किया, जिससे एक विशिष्ट आवासीय क्षेत्र बनेगा, जिसे कुतुब इन्क्लेव के आसपास बनाया गया था। आज, उस क्षेत्र को ‘डीएलएफ सिटी’ कहा जाता है, और 1981 में पहला लाइसेंस मिला था। 40 एकड़ के साथ, धीरे-धीरे, बिना बाजार को हिला के, उन्होंने धूम मचाई, धीरे-धीरे। 1983 में ही, सिर्फ 3 साल में, उन्होंने कुल लाइसेंस प्राप्त किया था।

556 एकड़ के भूमि को विकसित करने के लिए। तो आप समझ सकते हैं, सब एक ही व्यक्ति, एक ही कंपनी, 556 एकड़ की भूमि को विकसित करेगी, तो आपको लगता है कि इनकी जिंदगी तो मस्त है, यार। लाइसेंस मिल रहा है, चीजें बन रही हैं। लेकिन इतना भी मस्त नहीं है, कुछ ऊपर-नीचे होता है। अब इतना ऊपर भी है, कुछ नीचे भी दिखाता है, इसकी जिंदगी में डीएलएफ की जिंदगी में, जो सबसे बड़ी कलेश है, मैं कहूंगा। दिक्कत या समस्या, यह थी एक इनके दोस्त थे, जिनसे इनकी एक समय प में बहुत गाड़ी थी।

दोस्ती थी एक दूसरे के साथ, घर आने जाने का, चाय पकड़ने का और साथ में खाने का व्यवहार था। लेकिन बाद में वे एक दूसरे के दुश्मन बन गए। वे पहले भारतीय रक्षा मंत्री थे और फिर हरियाणा के मुख्यमंत्री बंसीलाल जी बने। बंसीलाल जी और उनके बीच पहले बहुत अच्छी दोस्ती थी, परंतु बाद में किसी वजह से उनके बीच मतभेद हो गए। 1986 में मुख्यमंत्री बनने के बाद, सबसे पहले उन्होंने यह निर्णय लिया कि जो सभी लाइसेंस डीएलएफ को मिले हैं, उन्हें रद्द कर दिया जाए। न केवल लाइसेंस को रद्द किया गया, बल्कि सरकार ने पत्र में भी विज्ञापन दिया, जिसमें कहा गया कि डीएलएफ के सभी लाइसेंस रद्द कर दिए गए हैं।

1984 में इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने

किसी भी निवेशक को अब कोई भी रुपया नहीं देना पड़ेगा, क्योंकि इस विज्ञापन से सरकार स्वयं निवेश कर रही है। अब आप बताएंगे कि आप कैसे काम करेंगे। ठीक है, उस समय डीएलएफ की प्रतिष्ठा बहुत ही बुरी हो गई थी, तो उन्होंने लाइसेंस दिया। अब क्या होगा? तो उस समय उन्होंने बहुत अच्छा निर्णय लिया, उन्होंने कहा कि जो भी रिफंड मांगेगा, उसे दे देना। फिर उस समय कुछ लोग रिफंड मांगने आए, पर जब वे देने लगे तो व्यक्ति ठीक था, तो लोगों ने ज्यादा रिफंड नहीं मांगे। एक बार स्थिति स्थिर हो गई। इस दौरान, 1984 में इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने और प्रधानमंत्री बनने के बाद वे क्या करते थे?

उनके निवास पर जनता दरबार लगाया करती थी और वहां लोग अपनी समस्याओं को सुनाते थे, जिसका समाधान किया जा सकता था। एक बार दरबार में बैठे हुए राजीव गांधी जी ने देखा कि केपी सिंह भी लाइन में लगे हैं।

“केपी सिंह जी, आप यहाँ क्यों लाइन में खड़े हैं?” राजीव गांधी जी ने पूछा।

“साहब, बंसीलाल जी ने मुझसे ऐसा कहा है,” उन्होंने जवाब दिया।

राजीव गांधी जी ने फिर कहा, “मुझे इनफॉर्म किया गया है कि आपको अरेस्ट करवाया जाएगा, तो बेहतर होगा अब चलिए, आप छुप जाइए।”

इसके बाद, जब केपी सिंह को ज़मानत मिली, उन्होंने फिर काम शुरू किया, लेकिन उनकी रेप्यूटेशन ख़राब हो चुकी थी। उन्हें बैंक से पैसे मिलने में दिक्कत हो रही थी, तो वह बाजार से पैसे उधार लिए और ज़मीन की ख़रीद पर ध्यान दिया। यह सोचते हुए कि लोन लेकर ज़मीन खरीदना अच्छा रहेगा, लेकिन लोन चुकाने का समय आया और उन्होंने पुराना लोन भी चुकाया।

जो जमीन 600 गज पर जा रही थी, वो लाइसेंस आने पर ₹2000 गज पर जाने लगी

बचे पैसों से फिर जमीन खरीदी, अब इसका समय आ गया है। तो फिर आप बोलेंगे, “राहुल जी, लोन लेकर जमीन क्यों खरीद रहे थे?” उस समय, 1989 में, 40,000 एकड़ का भाव था। उसके बाद, देवीलाल जी ने जो लाइसेंस निरस थे, उन्हें रिस्टोर कर दिया। तो जो जमीन उस समय बिना लाइसेंस के 600 गज पर जा रही थी, वो लाइसेंस आने पर ₹2000 गज पर जाने लगी। और एकदम तुरंत फायदा हुआ। लेकिन ये मजे थे ज्यादा लंबे समय तक नहीं चले, क्योंकि कुछ समय बाद चुनाव फिर हुए और फिर बंसीलाल जी वापस सीएम बन गए। और बंसीलाल जी तो ठन के बैठे थे कि “भैया, मैं सीएम बनूंगा, तो डीएलएफ को काम तो नहीं करने दूंगा”। उस समय एक रोड डेवलप हो रही थी।

जिसको आज की तारीख में एनएचए के नाम से जाना जाता है, जो कि जयपुर से दिल्ली को कनेक्ट करती थी, वह रोड जब डेवलप होती, तो उससे भाई साहब गुड़गांव को लाभ होता। स्पेशली केपी सिंह और डीएलएफ को आते ही, साहब सबसे पहले बंसीलाल जी ने रोड के काम को रोक दिया। फिर भाई साहब ने 2003 में जब चौटाला जी सीएम बने, तब एनएचए के काम को फिर से मंजूरी दी, और फिर यह प्रोजेक्ट बना। इस प्रकार, बंसीलाल जी और केपी सिंह के बीच थोड़ी तसल चली,

लेकिन बाद में बंसीलाल जी सीएम पद से चले गए, और उनके बेटे की भी एक दुखद दुर्घटना में मृत्यु हो गई। उसके बाद, धीरे-धीरे बंसीलाल जी शांत हो गए, और केपी सिंह से लास्ट मोमेंट पर उनकी दोस्ती हुई, और उन्होंने माना कि यार, मैंने तुम्हारे साथ थोड़ा गलत किया था। यह सब कुछ केपी सिंह ने अपनी पुस्तक में लिखा है।

गुड़गांव को कैसे प्रसिद्ध करें?

अब हम एक और महत्वपूर्ण अध्याय के बारे में बात करेंगे, जिसमें देश में बीपीओ के कल्चर की शुरुआत करने में केपी सिंह का कैसा योगदान है। जब यह पॉलिटिकल मारामारी चल रही थी, तो उन्होंने एक ओर कहा, “गुड़गांव को कैसे प्रसिद्ध करें?” उन्होंने सोचा कि गुड़गांव तब ही प्रसिद्ध होगा जब यहाँ पर विदेशी निवेशक आएंगे, बड़े-बड़े ब्रांड आएंगे। उन्होंने सोचा कि कॉर्पोरेट को बुलाया जाए, तो जब एक विदेशी कॉर्पोरेट आएगा, तो उसके पीछे सभी अनुयायी आ जाएंगे। उन्होंने सोचा, “किसे पकड़े, किसे पकड़े?” और उन्होंने उस समय विश्व के नंबर वन कॉर्पोरेट, जो GE था, के लीजेंडरी सीईओ जैक वेल्स को भेजने का निर्णय लिया।

जैक वेल्स के साथ उनकी मित्रता बनी, और उन्होंने उन्हें भारत आमंत्रित किया। उनका लक्ष्य था कि जैक वेल्स को इतना खुश करें, उतना प्रसन्न करें कि वे भारत आने के लिए मजबूर हो जाएं। इसके तहत, उन्होंने जैक वेल्स को भारत आने के लिए उत्साहित किया, और उन्हें भारत का ऐसा चेहरा दिखाने का लक्ष्य रखा कि वे इसे देख कर भारत आने के लिए तत्पर हो जाएं। उन्होंने उन्हें व्यक्तिगत रूप से भारत में शानदार सम्मान दिया।

फॉर्च्यून 500 की 250 से ज्यादा कॉर्पोरेट आज गुड़गांव में

उन्होंने बताया कि इस यात्रा में जो मिला वह उन्हें राजस्थान ले गया। वहाँ, राजस्थान में उनके लिए अद्भुत आतिशबाजी और अन्य चीजें थीं, जिन्हें वह पहले कभी सोच भी नहीं सकते थे। जब वे भारत आए, तो केपी सिंह ने उनका प्रबंध किया, जैसे कि किसी राजा का स्वागत हो। यह अनुभव उनकी जिंदगी की एक बेहद यादगार यात्रा थी, जिसका उल्लेख उनकी पुस्तक में भी है। बाद में, वे व्यापार में भी जुटे, जब जैक वेल्स की एक मीटिंग आयोजित की गई। उन्होंने कहा कि भारत में काम नहीं होता, जिसे सुनकर केपी सिंह ने पूछा, “क्या आपको कुछ चाहिए?” तो जैक वेल्स ने उन्हें एक जगह बैठाकर कहा कि “आपको इस मंत्री से मिलना है।”

चलो, हमारा जो बीपीओ का आउटसोर्सिंग काम है, अबकी बार इंडिया से करवाया जाए, और उस समय पहला कॉन्ट्रैक्ट 10 मिलियन डॉलर का मिला। उस समय, इंडिया में पहली बिल्डिंग इन्होंने गुड़गांव में डाली। जी ने अच्छा ये पूरा जी का एक छोटा सा डिवीजन था जिसमें काम आता था। फिर, जब काम फैला, तो उन्होंने डिवीजन को एक अलग से कंपनी बना दिया। उस कंपनी को आज हम जेनपैक के नाम से जानते हैं।

धीरे-धीरे जो मिलियन का काम बिलियन में आ गया, और जब जी विश्व की सबसे बड़ी कंपनी भारत में आई, तो उसके बाद तो एक के बाद दूसरी दूसरी के बाद तीसरी करते-करते फॉर्च्यून 500 की 250 से ज्यादा कॉर्पोरेट आज गुड़गांव में अपना ऑफिस रखती हैं। इसीलिए, जैक वेल्स ने अपनी किताब में इनको “ट्रू एंबेसडर ऑफ इंडिया” भी कहा है।

हफीज कांट्रैक्टर ने 10 साल तक उनकी बिल्डिंग्स बनाई थीं

केपी सिंह को कि भाई इसके पीछे हम लोग आए थे, यह ना होता तो हम कभी भारत की दिशा में मुड़ते ही नहीं। 2003 आ गया था और आईटी कार्य शुरू हो गया। बड़ी-बड़ी इमारतें बनने लगीं। तब भाई साहब, जो उस समय के मुख्यमंत्री थे, ओम प्रकाश चौटाला जी, उन्होंने कहा कि आईटी संबंधित परियोजनाओं पर थोड़ा ध्यान देना चाहिए। और यहाँ कुछ ऐसी जगह बनाई जाए जिससे आईटी कंपनियों को आसानी से आने का फायदा हो। तो डीएलएफ ने कहा हां, जी साहब, हम पहुँचते हैं। फिर बनी साइबर सिटी, जो 13 मिलियन वर्ग फुट, अर्थात 1 करोड़ 30 लाख वर्ग फुट क्षेत्र में पूरी तरह से बसी गई।

डीएलएफ ने गुड़गांव में सिर्फ कॉर्पोरेट के लिए ही नहीं, बल्कि रेजिडेंशियल स्तर पर भी काम किया। उन्होंने कहा कि जब इतने बड़े कॉर्पोरेट आएंगे, तो उनके कर्मचारी, सीईओ, मैनेजर, प्रेसिडेंट्स के लिए भी आवास की जरूरत होगी। उन्होंने भी लग्जरी आवास बनाने की बात की। उनकी बनाई हुई प्रॉपर्टी आज भी वेल-मेन्टेन की जाती है और उसका मान बना रहता है क्योंकि उन्होंने सबसे अच्छे मटेरियल और प्रोसेस का उपयोग किया।

उनकी बिल्डिंग्स के आर्किटेक्ट हफीज कांट्रैक्टर थे। हफीज कांट्रैक्टर ने 10 साल तक उनकी बिल्डिंग्स बनाई थीं। वे कहते हैं कि उनके साथ काम करने में बहुत मजा आता था। वे किसी भी तरह के एक्सपेरिमेंट को मना नहीं करते थे और हमेशा सबसे अच्छे मटेरियल का इस्तेमाल करते थे।

डीएलएफ की मार्केट वैल्यू अब 2 लाख करोड़ है

डीएलएफ ने कभी भी ऐसा नहीं किया कि वे सस्ते मटेरियल का उपयोग करें। उन्होंने गोल्फ कोर्स भी बनाया, जो विश्व के शीर्ष 10 गोल्फ कोर्स में शामिल है। डीएलएफ की मार्केट वैल्यू अब 2 लाख करोड़ है, जो पिछले एक साल में लगभग डबल हो गई है।

आज से 12 महीने पहले, यह कंपनी 1 लाख करोड़ की थी, लेकिन प्रीम माइजेस के आने के बाद यहां लग्जरी उत्पाद बिकने लगे हैं और उनके उत्पादों को एक के बाद हिट हो रहा है। उसके बाद से इसका मार्केट कैप लगभग डबल हो गया है पिछले एक साल में और इस प्रकार, यह आज की तारीख में भारत की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी है। अगर हम केपी सिंह की बात करें, तो उनका निजी नेट वर्थ के हिसाब से वे भारत के सबसे अमीर व्यक्ति हैं, यह विश्व में 92 वें स्थान पर हैं और 2010 में सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया।

डीएलएफ ने बहुत सारी चीजें ऐसी शुरू की हैं जिनके बिना भारत में कुछ नहीं होता। जब आईपीएल शुरू हुआ था, तो टाइटल स्पॉन्सर डीएलएफ ही थे।

यह आपको समझना चाहिए कि बाकी सभी बिल्डर्स ने शहर में प्रोजेक्ट डेवलप किए होंगे, लेकिन डीएलएफ ने एक शहर ही पूरी तरह डेवलप कर दिया है। उन्होंने गुड़गांव में 3000 एकड़ एरिया डेवलप किया है, जिसकी उस समय की लागत 50000 करोड़ रुपए थी। यह किसी भी अन्य बिल्डर के लिए किसी भी शहर में सबसे बड़ा डेवलपमेंट है। यह डीएलएफ की कहानी है, जो आज की तारीख में भारत का सबसे बड़ा रियल एस्टेट डेवलपर है।

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