Jamnagar Refinery | Mukesh Ambani के पैसों का कुआँ | Fully Explained

Jamnagar Refinery

Jamnagar Refinery: मुकेश अंबानी असली जिंदगी के रॉकी भाई हैं। जैसे कि रॉकी भाई के पास केजीएफ था ना, सोने की खान जहां से खूब पैसा दादा वैसी एक सोने की खान और यहां पे बोलू पैसे का कुआं तो मुकेश अंबानी के पास भी है लेकिन वह कौन सा है? शायद जिओ का होना उनका रहा है, यह रिटेल है, बहुत सारे बिजनेस हैं, एक्जेक्टली कोई बता ही नहीं रहा कि यह हमारे देश का सबसे अमीर आदमी आखिर पैसा कैसे कमा रहा है। हम आज इस राज को खोलेंगे

हम आपको एक बात बताये कि इनके पास जो राज है, जो पैसे का कुआं है, वह इतना बड़ा है कि यह सुबह रॉकी भाई को खरीदते हैं और शाम को भेज देना। इतना पैसा होने के कारण वे सोचते ही नहीं हैं कि कोई भी कंपनी खरीदनी हो, कुछ भी करना और लें लें भाई, लें लें छोटे पैसे में भी लें लें क्योंकि हमारे पास पैसे का कुआं है।

वह पैसा का कुआ है जामनगर रिफाइनरी, तो आज हम पूरे लेख में इसके बारे में बात करेंगे। ये जामनगर रिफाइनरी इन्होंने एक कब लगाई थी? कैसे लगाई थी? और क्यों लगाई थी? इसके साथ ही, ये काम कैसे करती है और इसके बड़े पैसे कमाने की रणनीति क्या है? अंततः, हम यहां आपको मुकेश अंबानी के दिमाग की सोच के बारे में भी बताएंगे।

असली जिंदगी के रॉकी भाई

असली जिंदगी के रॉकी भाई मुकेश अंबानी जी के KGF (केजीएफ) की तरह, क्यों है कोलार गोल्ड फील्ड (KGF) की गोल्ड की इतनी सारी mine हैं जिससे वे इतना पैसा कमा रहे हैं? इससे भी बड़ा सेटअप रियल लाइफ में है जामनगर रिफाइनरी का, ये दुनिया की सबसे बड़ी रिफाइनरी है। तो आप सोच रहे होंगे, रिफाइनरी क्या करती है? इसे समझाने के लिए, रिफाइनरी का काम सिर्फ इतना है कि जो भी क्रूड ऑयल आता है, उसे ऑयल को प्रक्रिया करना पड़ता है ताकि उससे उपयोगी तत्वों को अलग किया जा सके।

ठीक है, देखिए एक उदाहरण के रूप में, अगर आप क्रूड ऑयल को क्रूड ऑयल गाड़ी में डालेंगे, तो गाड़ी फूंक जाएगी। पहले कोयल आती है, फिर उससे पेट्रोल बनता है, फिर डीजल, और केरोसिन भी। इसके अलावा, इससे 50 से 100 से ज्यादा केमिकल्स भी बनते हैं। क्रूड ऑयल को इन उत्पादों में बदलने के लिए रिफाइनरी का उपयोग किया जाता है, जो कि इन उत्पादों को कम में बदलती है। इसमें दुनिया की सबसे बड़ी रिफाइनरी भी है। रिफाइनरी का आइडिया आने के बाद मुकेश अंबानी जी को कैसे आया, इसके बारे में जानकारी मिलेगी?

वेंडर्स पर ज्यादा डिपेंडेंट नहीं रहते अगर आपको अपने को ग्रो करना है, तो आपको सस्ता माल चाहिए जो आप खरीद रहे हैं। वे खुद ही माल बनाने लग जाएंगे। याद करें, इन्होंने बैकवर्ड इंग्रेशिएशन कैसे-कैसे किया है। पहले वे विमल बेच रहे थे, फिर उन्होंने द ओनली विमल बनाया। उन्होंने गायक कपड़ा बनाना शुरू किया। अब आप ये सोचें, कपड़ा कैसे बनता है? याद करें, पॉलिएस्टर फिलामेंट से ये बनाते हैं। साहब, पॉलिस्टर फिल्म इंडिया बनाने लग गए। फिर कहा, “इसके लिए क्या कम में आता है?”

पॉलीमर किस से बनता है?

पुलिस के लिए पॉलीमर कम में आते हैं। तो भाई, हम भी पॉलीमर बनाएंगे। ये कहा, “पॉलीमर किस से बनता है?” “पेट्रोल केमिकल से,” उसने कहा। “साला, वो भी हम बनाएंगे।” तो मतलब, पेट्रोल के विकल्प में क्या होता है? “वो तो ऑयल की रिफायनिंग जाता है,” उसने कहा। और अब वो कहते हैं, “रिफाइंडिंग भी हमें डाल देते हैं।” तो ये पीछे पीछे जाते रहे। क्लियर है, इसे कहते हैं बैकवर्ड इंटीग्रेशन। तो जिनसे ये माल लिया करते थे, बाद में उनको भी माल बेचने लग गए। इनका काम कितना बड़ा हो गया है। तो ये स्ट्रेटेजी आप भी अपने बिजनेस में देखें। क्या कहीं लगाए सकते हैं सर? इसका फायदा क्या है? पहली बात तो वेंडर पर डिपेंडेंसी कम होगी। हम तो खुद ही मान रहे हैं जितनी जरूरत होगी, बना लेंगे।

Jamnagar Refinery की पहली फेस बनी थी, छह बिलियन डॉलर में

तुम्हें इसकी सहायता करने में मैं खुशी होगी। यहाँ इस वाक्यांश का सही हिंदी में अनुवाद है: “तुम पर डिपेंडेंसी नहीं रखेंगे। तुम यह कब बनाओगे, कब बेचोगे, और किस क्वालिटी पर मेरा पूरा कंट्रोल है, यह सब हमेशा उपलब्ध रहेगा, सस्ता मिलेगा, और बड़ी मात्रा में मिलेगा। तुम्हें भी इसका लाभ मिलेगा, अगर तुम इस व्यवसाय पर ध्यान देना चाहो, स्ट्रीट की कीमत नहीं है इस व्यवसाय की।” अगर तुम्हें कोई और सहायता चाहिए, तो मुझसे पूछ सकते हो।

जब उनकी Jamnagar Refinery की पहली फेस बनी थी, उसमें छह बिलियन डॉलर लगे थे। आज की तारीख में, यदि डॉलर की मूल्य ₹80 है, तो छह बिलियन डॉलर के लगभग 50 हजार करोड़ रुपए होते। जो भी रुपये की मूल्य हो, उस बड़े निवेश का रिटर्न आवेदन के रूप में 6 से 8% की रेटर्न ऑन इनवेस्टमेंट (ROI) होती है, जो कि इसके निर्माण में 12% खर्च के साथ आती है। धीरूभाई अंबानी ने कहा था कि हमें क्या करना चाहिए, यदि हम इसे छोटे स्तर पर बनाते हैं, तो इससे उन्हें महंगा पड़ेगा, लेकिन बड़े स्तर पर बनाने से कास्टिंग सस्ती होगी। हम रिफाइनरी में उन्नति करेंगे ताकि लोग 10 उत्पाद बनाने की बजाय 20 उत्पाद बना सकें।

5000 एकड़ के क्षेत्र को 31 वर्ग किलोमीटर में

वे इन विषयों पर अधिक जानकारी देंगे, जैसे कि कैसे वह चीज बनती है और उसका आकार कितना होता है। उन्होंने एक प्लांट लगाया और अब वे बताएंगे कि उस प्लांट का क्या स्केल है। वह प्लांट का फेस वैल्यू बनाने के लिए इस 5000 एकड़ के क्षेत्र को 31 वर्ग किलोमीटर में बढ़ावा दिया था। इसका कंस्ट्रक्शन 350 मेगावॉट की ओवर प्लांट के साथ हुआ था, साथ ही दो केमिकल प्लांट और 105 मिल रोड भी बनाई गई थीं। वहाँ 3000 फैमिलीज़ के लिए आवास भी बनाया गया था। एक समुद्र के पानी को खारा पानी में बदलने के लिए एक सी वॉटर रिलेशन प्लांट भी स्थापित किया गया था।

उन्होंने एक IT नेटवर्क भी बनाया, जिसमें हजार्ड टर्मिनल 200 किलोमीटर फाइबर ऑप्टिक केबल से जुड़े हुए हैं। इस सब काम को उन्होंने 1999 में किया था और उसके लिए बजट भी था। यह सब कुछ 3 सालों में किया गया, जो कि बहुत तेजी से है। इससे वह दुनिया में अन्य रिफाइंडरी की तुलना में 40% कम कॉस्ट पर काम कर रहे थे। अब वे दूसरे फेज में आ गए हैं, जिसमें भी बहुत बड़े आयाम की चीजें हैं। अब आपको लगेगा कि यह बहुत बड़ा होगा तो क्यों न कहें कि यह मुकेश अंबानी जैसे लोगों के पैसे पर ऐश कर रहे हैं।

कंपलेक्सिटी इंडेक्स का मतलब

8000 वेल्डर, 8000 कारपेंटर, और 5000 पाइप फिटर हमेशा मौजूद रहते हैं डिजाइनिंग में। टोटल 1 करोड़ घंटे के टोटल कंबाइंड वर्क को पूरा करने में लगे हैं। 18000 किमी की इलेक्ट्रिक केबल, 15000 किलोमीटर की इंस्ट्रूमेंटेशन, केवल 20000 किलोमीटर की पाइपिंग, और 250 किलोमीटर की रोड यहां तैयार हुई हैं। हमारे मोटे भाई अब अगर रिफाइनरी वर्ल्ड की सबसे बड़ी है तो यह प्रॉफिटेबल कैसे हो, इसमें मार्जिन नहीं है? देखो, पहली बात तो ये है कि skill जब कोई चीज इतने बड़े लेवल पर बना दोगे तो चीजों की कास्टिंग वैसे ही सस्ती पड़ेगी। दूसरी बात ये है कि गुजराती और मारवाड़ी लोग हैं, जो अपनी एफिशिएंसी में महारत रखते हैं।

जहां नॉर्मल रिफाइनरी का वेस्ट लगभग 5% होता है, वहीं जामनगर में वेस्ट होता है पॉइंट 0.20% आधा मार्जिन। किसी भी refindry की क्वालिटी उसके Ci पे निर्भर करती है, जो कंपलेक्सिटी इंडेक्स का मतलब है। इससे बढ़िया काम करने में वे सक्षम होती हैं। तो, एक नॉर्मल ci की रिफाइनरी की तुलना में, वे बेहतर काम कर सकती हैं।

गंदे से गंदे मटेरियल का प्रक्रियाबद्ध

“एक काम करो, 50 तरह के कच्चे माल को मैं प्रक्रियाबद्ध कर दूंगी और हम 20 तरह के आइटम बना देंगे, रिलायंस के 10 सुनो, हमारी रिफाइनरी जो CI है, वह 21 पॉइंट्स दे। यानी हम 170 तरीके के रॉ मटेरियल्स ले आओ और हम उससे 100 से ऊपर तरीके बना देंगे। तो रिलायंस के पास ऑप्शन है कि जब मार्केट में माल ऐसा मिल रहा है कि क्रूड ऑयल 50 डॉलर का तो 50 डॉलर का ऑयल बना सकते हैं। पर जो $20 का कच्चा माल है, तो कोई नहीं कर सकता। रिलायंस बोलता है, ‘मैं कर दूंगा।’ गंदे से गंदे मटेरियल का प्रक्रियाबद्ध कर देता है, तो सस्ते से सस्ता मटेरियल प्रक्रियाबद्ध करता है।

प्लस, दुनिया भर के आइटम बना सकता है। तो बाजार में अगर पेट्रोल का भाव ऊंचा है, तो पेट्रोल ज्यादा बनाएंगे। बाजार में लगता है पेट्रोल में कम मजा नहीं आ रहा है, डीजल में है, तो पेट्रोल कम, डीजल ज्यादा बना देगा। अरे, पहले दोनों ही कमजोर पढ़े। गैस बना देते हैं और कमजोर बना है, कुछ और केमिकल बना देते हैं। मौका देखकर चौंका देते हैं। कास्टिंग सबसे कम है, कैसे नहीं कमाएंगे भाई। इसीलिए इस साल की बात करें।

कम से कम वेस्टेज

और भारत सरकार के जो है, भारत पेट्रोलियम की 10 एचपीसीएल की रिफाइनरी है भटिंडा में, 12 आईओसीएल की है उड़ीसा में, 12 पॉइंट दो से ऑयल की रिफाइनरी 11.8 भैया, सबसे डबल डबल ट्रिपल लेवल पे है। इसलिए बाकी रिफाइनरी की तुलना में पर बैरल पे $4 एक्स्ट्रा का प्रीमियम लेते हैं। मोटा भाई, अभी मैंने आपको बताया कि भैया, ये है Jamnagar Refinery। इतनी बड़ी बनाई थी। ये वाला गेम चल रहा है, इसलिए कम से कम तो कॉस्ट आती है और ज्यादा से ज्यादा पैसे कूदते हैं। कम से कम वेस्टेज होता है। कंपटीशन नहीं देनी कहीं आसपास है ही नहीं। इंडिया का क्या, पूरे वर्ल्ड का फूड करके भेज दे हमारे मोटा भाई।”

देश का नंबर वान आदमी बनने के लिए

सबसे महत्वपूर्ण बात, हम आपको एक बात बताये कि अब आपके पैरों से धरती हिल जाएगी। इतना सब कुछ करने के बाद भी मोटा भाई बोल रहे हैं कि पेट्रोल-डीजल की बात अब वैसी नहीं रही, क्योंकि इलेक्ट्रिक वाहनों का आगमन हो रहा है। पेट्रोल की महत्वता कम होगी, और धीरे-धीरे पूरे Jamnagar Refinery को इस तरह से रिस्टार्ट किया जा रहा है कि पेट्रोल की उपलब्धता को कम किया जा सकेगा। इसके साथ ही डीजल भी बंद हो जाएगा। केवल उन केमिकल्स की उपलब्धता बनी रहेगी जो उद्योग में कम इस्तेमाल होते हैं, और मार्जिन जो पेट्रोल और डीजल से कम है, उसे बढ़ावा दिया जाएगा। ऐसा लगता है कि रिलायंस को अब बहुत पैसा कमाने में दिक्कत होगी, और यहां एक सीखने योग्य बात है कि वे इलेक्ट्रिकल सेक्टर की ओर ध्यान दे रहे हैं।

10 साल बाद पेट्रोल की मांग कम हो सकती है, और इसके लिए आज से ही तैयारी की जा रही है। जब प्रॉब्लम आती है, तो वहीं हमें सबक सिखाता है। यह देश का नंबर वान आदमी बनने के लिए पॉलिटिकल कनेक्शन की आवश्यकता नहीं है, आपके पास बस दिमाग और विजन होना चाहिए।

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