Electoral Bonds Scam: The Pharma Files | दुनिया का सबसे बड़ा स्कैम, जानिए पूरी जानकारी…

Electoral Bonds Scam

दुनिया का सबसे बड़ा स्कैम: The Pharma

नमस्कार दोस्तों, इलेक्टोरल बॉन्ड का स्कैम न केवल देश का सबसे बड़ा स्कैम है, बल्कि यह पूरी दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला है। यह बात मैंने नहीं कही है, बल्कि हमारी फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण के पति, एक इकोनॉमिस्ट भी हैं, वो कह रहे हैं कि इलेक्टरल बॉन्ड इशू इन्डिया का सबसे बड़ा स्कैम नहीं है, बल्कि यह दुनिया का सबसे बड़ा स्कैम है। पिछले वीडियो में मैंने आपको बताया था कि ये केवल एक घोटाला नहीं है, बल्कि इसमें कई छोटे-बड़े स्कैम्स छिपे हुए हैं। कुछ इस तरह के स्कैम्स में सीधे तौर पर जनता के पैसे की चोरी होती है, कुछ ऐसे केसेस में जहां अनवर्थी कंपनियों को सरकारी टेंडर्स दिए गए हैं, कुछ ऐसे केसेस में जहां टैक्स चोरी करने वाली कंपनियों को खुलेआम चोरी करने दी गई, और कुछ ऐसे केसेस जहां कंपनियों से हफ्ता वसूली की गई। लेकिन इन सबके अलावा, कुछ ऐसे भी घोटाले हैं जहां आम लोगों की जिंदगियों के साथ खिलवाड़ किया गया है।-दुनिया का सबसे बड़ा स्कैम

जब किसी व्यक्ति को किसी बीमारी की वजह से मौत होती है, तो लोग कहते हैं कि यह भगवान की मर्ज़ी थी। लेकिन सोचें, अगर कोई व्यक्ति खराब गुणवत्ता की दवाइयों की वजह से मरता है, तो क्या आप इसे भगवान की मर्ज़ी कहेंगे? यहां तक कि अगर सरकारी नियामक एक कंपनी की खराब गुणवत्ता की दवाइयों को नजरअंदाज़ कर देते हैं और इसकी वजह से लोग मरते हैं, तो आपको लगेगा कि यह किसी डार्क पॉलिटिकल थ्रिलर फिल्म का प्लॉट हो। लेकिन यह सच्चाई है।

हेल्थ रिपोर्टर प्रियंका पुला ने लिखा…

एक रिपोर्ट देखिए, जिसे हेल्थ रिपोर्टर प्रियंका पुला ने लिखा और लाइव मिनट में दिसंबर 2021 में प्रकाशित किया गया था। इसमें एक किस्सा है मई 2021 का, जो उत्तर प्रदेश के चिरंजीव हॉस्पिटल में हुआ। एक एनेस्थेसिया डॉक्टर को दो गहरी गहरी बातें समझने को मिलीं, एक कॉल में। उन्हें बताया गया कि दो पेशेंट्स के अजीब सिम्टम्स देखे गए हैं – बुखार, कमजोरी, और अचानक ब्लड ऑक्सीजन लेवल की गिरावट। इन पेशेंट्स को एंटीवायरल दवा दी गई थी, लेकिन उसके बाद उनके हालत में गंभीर परिवर्तन आया। डॉक्टरों ने इस बैच की दवाई का उपयोग करना बंद कर दिया, और इन पेशेंट्स के लिए दूसरी दवा का सुझाव दिया। इस तरह की कई और घटनाएं सामने आईं, और इस से साफ है कि कई इलाकों में ऐसी समस्याएं हो रहीं थीं।

पेशेंट्स को एंटीवायरल दवाई रेम डे सवीर का पहला शॉट दिया गया था और यह रिएक्शन सिर्फ एक घंटे के बाद उनमें देखने को मिला। कमाल की बात यह थी कि इंसिडेंट नहीं था कुछ ही दिन पहले जितेंद्र पाल ने देखा था। सेम चीज हो रही थी लाइफलाइन हॉस्पिटल के चार पेशेंट्स के साथ इन्वेस्टिगेशन करी तो पता चला इन दोनों हॉस्पिटल्स में पेशेंट्स को सेम दवाई का बैच दिया गया था। बैच v100 1667 इसे गुजरात की कंपनी जाइडिस कैडिला के द्वारा मैन्युफैक्चर किया गया था। इस दवाई को उत्तर प्रदेश की सरकार ने प्रोक्योर किया था इस कंपनी से। लेकिन जैसे ही डॉक्टर्स को पता चला कि पेशेंट्स में रिएक्शन देखने को मिल रहे हैं, डॉक्टर्स ने इस बैच की दवाई को यूज करना बंद कर दिया। डॉक्टर्स ने फैमिलीज को बताया कि वे कोविड पेशेंट्स के लिए एक दूसरे ब्रांड की दवाई इस्तेमाल करें।

दुनिया का सबसे बड़ा स्कैम: रेम डे सिविर

जितेंद्र पाल ने लाइव मिंट को बताया कि एक बारही उन्होंने यह दवाई यूज करनी बंद करी तो पेशेंट की कंडीशंस इंप्रूव हो गई। लेकिन सिमिलर कहानियां उत्तर प्रदेश के कई सारे और हॉस्पिटल से भी आ रही थीं। झांसी महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज, मेरठ का लाला लाजपतराय मेमोरियल मेडिकल कॉलेज, और वाराणसी का आशीर्वाद एंड एपेक्स हॉस्पिटल सेवंथ और नाइंथ मई के बीच डॉक्टर अनुज कुमार, जो एक और हॉस्पिटल में काम कर रहे थे, उन्होंने भी सेम चीज रिपोर्ट की। पांच पेशेंट्स जिन्होंने इस कंपनी की रेम डे सवीर खरीदी थी v100 1556 बैच की, उन्हें अचानक से फीवर हो गया और सांस लेने में प्रॉब्लम होने लगी। डॉक्टर अनुज कुमार ने बताया कि इन दो कोविड के सिम्टम्स सिमिलर थे, लेकिन यहां पर यह बताना काफी आसान था कि दवाई की वजह से पेशेंट्स को प्रॉब्लम हो रही थी। कुछ ही दिनों बाद बाकी और स्टेट से भी ऐसी खबरें आने लगीं। राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार पेशेंट्स रेम ड स्वीर लेने के बाद बीमार पड़ जा रहे थे।

इन सभी दवाइयों के बैचेज एक दूसरे से काफी सिमिलर थे V100153, V100156, V100166, V100167, V100170 या फिर l V100148 इन सभी केसेस में एक ही कंपनी ने इन दवाइयों को मैन्युफैक्चर किया था कडेला सरकारी ओंड प्रोक्योरमेंट कंपनीज थी जिन्होंने इन दवाइयों को खरीदा था। ढेर सारे हॉस्पिटल्स ने इस चीज को लेकर आवाज उठाई लेकिन उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, और गुजरात के स्टेट रेगुलेटर्स ने ज्यादा कुछ किया नहीं। सिर्फ बिहार के रेगुलेटर ने यहां पर एक रेड फ्लैग रेस की। इन्होंने इस कंपनी की V1001667 बैच की दवाइयों को टेस्ट कराया और पता चला कि एक्चुअली में इन दवाइयों में बैक्टीरियल एंडोटॉक्सिंस मौजूद थे।

बिहार के रेगुलेटर ने गुजरात के एफडीसीए को भी इफॉर्म किया था….

वो कंपाउंड्स जिनकी वजह से इंसानों को फीवर हो सकता है और एक्सेस में लिया जाए तो सेप्टिक शॉक भी लग सकता है। जब यह बात सामने आई तो अक्टूबर में पटना सिविल कोर्ट में केस भी फाइल किया गया। इस कंपनी के अगेंस्ट बात यहां पर यह है कि इस कंपनी की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स गुजरात में लोकेटेड थी और गुजरात एफडीसीए की रिस्पांसिबिलिटी थी कि ये चेक किया जाए कि इस कंपनी की सारी दवाइयां क्वालिटी स्टैंडर्ड्स मीट कर रही हैं या नहीं। इन्होंने ही एक्चुअली में लाइसेंस दिया था इस कंपनी को यह दवाई मैन्युफैक्चर करने के लिए और जब ये रिपोर्ट्स आने लगीं कि इनकी कुछ दवाइयां सब इनकी कुछ दवाइयां सब स्टैंडर्ड क्वालिटी की हैं तो बिहार के रेगुलेटर ने गुजरात के एफडीसीए को भी इफॉर्म किया था.

इनकी रिस्पांसिबिलिटी थी टेस्ट करना इन बैचेज को लेकिन इन्होंने कोई टेस्टिंग नहीं करी। जॉइंट कमिशनर ऑफ गुजरात रेगुलेटरी लैब ने मिंट को बताया कि जो खराब दवाइयां थीं वो उनकी लैब में कभी पहुंच ही नहीं पाई, टेस्टिंग के लिए गुजरात डीसीए के कमिश्नर से बार-बार सवाल किए गए कि इनके डिपार्टमेंट ने दवाइयों की टेस्टिंग क्यों नहीं करी, लेकिन सवालों का कोई जवाब नहीं आया। देश के ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स कानून के अनुसार, हर एक खराब बोतल इस दवाई की वापसी के लिए होनी चाहिए।

14000 से ज्यादा लोगों पर, 450 से ज्यादा हॉस्पिटल्स में, 35 अलग-अलग देशों

जाना चाहिए था लेकिन इसका भी कोई सबूत नहीं कि गुजरात के एफडीसीए ने उन दवाइयों को वापस लिया हो। इस कंपनी कडेला के स्पोक्स पर्सन से जब सवाल किया गया तो उन्होंने इन सारी रिपोर्ट्स को डिनायर किया। अब इस पूरी कहानी में एक और शॉकिंग ट्विस्ट सुनिए। ये सब होने से छह महीने पहले, नवंबर 2020 में ही, डब्ल्यू एओ यानी वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने कह दिया था कि रेम डे सवीर को हमें नहीं यूज करना चाहिए। डूओ ने एक बहुत बड़ी स्टडी की थी, 14000 से ज्यादा लोगों पर, 450 से ज्यादा हॉस्पिटल्स में, 35 अलग-अलग देशों के। इस स्टडी में पाया गया कि रेम डेस वर एक्चुअली में कोविड के खिलाफ इफेक्टिव नहीं है।

लेकिन फिर भी हमारी सरकार ने ना सिर्फ रेम डेस वर को अप्रूव किया, बल्कि इसकी प्रोडक्शन को बढ़ाने की भी बात की। अप्रैल 2021 की सरकार की प्रेस रिलीज को देखिए, इस दवाई को ओरिजनली एक अमेरिकन कंपनी ने डेवलप किया था और इंडिया में सात इंडियन कंपनियों को इसका मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस मिला था। अब आप पूछेंगे कि इस सब का इलेक्टोरल बॉन्ड से क्या कनेक्शन है? दोस्तों, बड़ा तगड़ा कनेक्शन है, लेकिन वो कनेक्शन बताने से पहले आप इस क्रोनोलॉजी को एक बार समझ लें।

WHO ने कहा कि रेम डे सवीर को नहीं इस्तेमाल किया जाना चाहिए

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन(WHO) ने कहा कि रेम डे सवीर को नहीं इस्तेमाल किया जाना चाहिए। मोदी सरकार ने WHO के इस एडवाइस को इग्नोर किया और इस दवाई की प्रोडक्शन बढ़ाने को प्रूफ किया। इस दवाई को बनाने का अप्रूवल जाइड केडिला कंपनी को दिया गया। गुजरात एफडीसीए ने इन खराब बैचेज की कोई टेस्टिंग नहीं करवाई। BJP की सरकार सेंटर में भी थी और गुजरात में भी, और अब हमें इलेक्टोरल बंड्स के डाटा के जरिए पता चलता है कि यह जाइड केडिला कंपनी ने 8 करोड़ रुपये डोनेट किए बीजेपी को। मैं सिर्फ एक सवाल प्रधानमंत्री मोदी से करना चाहूंगा, क्या आम इंसान की जान की भी कोई कीमत नहीं है? क्या इस कंपनी ने कांग्रेस को भी डोनेट किए, जो उस वक्त राजस्थान में पावर में थी, और 8 करोड़ BJP की एलय (SKM) सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा को भी डोनेट किए, जो 2019 से सिक्किम में पावर में है? इस पॉलिटिकल पार्टी को तो पांच कंपनियों से डोनेशंस मिली थी।

उनमें से चार कंपनियाँ फार्मा कंपनियाँ थीं। सिक्किम को एक फार्मा हब माना जाता है और देखकर लगता है कि एसकेएम ने भी इसका पूरा फायदा उठाया। जाइडिस केडिला भी एक अकेली ऐसी कंपनी नहीं है। इसके अलावा, एक फार्मा कंपनी है, ग्लेन मार्क फार्मास्यूटिकल्स ने 2022 और 2023 के बीच में पांच नोटिसेज दिए, जो सभी स्टैंडर्ड ड्रग्स की वजह से थे। इनमें से चार नोटिसेज महाराष्ट्र फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन ने दिए थे। इस कंपनी की जो ब्लड प्रेशर रेगुलेट करने की दवाई थी, उसे सब स्टैंडर्ड बताया गया।

मोदी ने ‘फिट इंडिया’ मूवमेंट लॉन्च किया था

इलेक्टोरल बॉन्ड्स डेटा के जरिए पता चलता है कि इस कंपनी ने नवंबर 2022 में 9.75 करोड़ की इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदी थी। इन सारी बॉन्ड्स को बीजेपी ने कैश में किया। प्रधानमंत्री मोदी ने ‘फिट इंडिया’ मूवमेंट लॉन्च किया था। कुछ साल पहले मैं पूछना चाहूंगा क्या यही है आपका ‘फिट इंडिया’? एक और गुजरात-बेस्ड कंपनी को देखिए जिसका नाम फार्मा है। इसकी एंटी प्लेटलेट दवाई ‘डे पलट 150’ ने सैली साइक एसिड टेस्ट फेल कर दिया था। महाराष्ट्र फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने इसे खराब क्वालिटी का बताया था। अक्टूबर 2019 में, अमेरिका के फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन ने भी इस कंपनी को वार्निंग दी कि इनकी क्वालिटी रिलेटेड फेलियर हो रहे हैं।

इस कंपनी ने मई 2019 और जनवरी 2024 के बीच में 7757 करोड़ की इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदी। इनमें से मेजॉरिटी पैसा 61 करोड़ बीजेपी के पास गया। जब इस कंपनी की दवाइयों को लेकर वार्निंग दी गई थी, तो इंडियन अथॉरिटीज को कम से कम इंस्पेक्शन तो करना चाहिए था, लेकिन गुजरात में मौजूद BJP की सरकार ने कोई एक्शन नहीं लिया। एक और मेजर फार्मा कंपनी, सिपला, को चार शो कॉस नोटिसेज मिले। उनकी दवाइयों को लेकर अगस्त 2018 में जब इंस्पेक्शन किया गया तो इस कंपनी का एक आरसी कफ सिर्फ था, जो स्टैंडर्ड्स मीट नहीं कर पाया।

फार्मा कंपनी सिपला: दुनिया का सबसे बड़ा स्कैम

जुलाई 2021 में इसे नोटिसेज मिले, जब इसने अपनी रेम डेस वर दवाई को लेकर इनकी रेम डेस वर दवाइयों में रेम डे सवीर की सफिशिएंट क्वांटिटी ही मौजूद नहीं थी। इस कंपनी ने 9.2 करोड़ की इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदी, जिसमें से 337 करोड़ चंदा बीजेपी के पास गया और 2 करोड़ चंदा कांग्रेस के पास गया।

जून 2022 तक उसके बाद, बीजेपी की कोलिशन सरकार फिर से बनती है, और इस कंपनी ने नवंबर 2022 में दोबारा से इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीद लिए। चंदा दो धंधा लो, ये जो स्कीम है यहां पर ये इलेक्टोरल बॉन्ड घोटाले का सिर्फ एक हिस्सा है। लोगों को लगता है कि इन कंपनियों ने चंदा दे दिया और उसे धंधा मिल गया, लेकिन बाकी कंपनियों का नुकसान हुआ। कुछ लोग तो ये भी सोचेंगे कि जनता का पैसा है थोड़ा सा लूट लिया होगा। कंपनी को कुछ एक्स्ट्रा अमाउंट देकर हमें क्या लेकिन क्या आपकी हिम्मत है इस केस को सुनकर भी?

इस दवाई को ना सिर्फ एडल्ट्स को दी जाती है बल्कि बच्चों को भी दी जाती है जिनकी 6 साल से ऊपर की उम्र होती है। दिसंबर 2022 की खबर में, उज्बेकिस्तान में 18 बच्चों की मौत हो गई, खराब क्वालिटी कफ सिर्फ पीने की वजह से। अगले महीने जनवरी 2023 में, ओ ने इन बच्चों की मौत को दो कंटेम कफ सिर्फ से लिंक किया। बब्रो नोल सिर्फ और डीओ केव मैक्स सिर्फ लेबोरेटरी एनालिसिस करी गई तो पता लगा कि इन दोनों प्रोडक्ट्स में बहुत ही हाई अमाउंट मौजूद है डाई इथाइन ग्लाइकोल या इथाइन ग्लाइकोल का। इन दोनों कप सिरप्स को मैन्युफैक्चर किया गया था। उत्तर प्रदेश में मौजूद एक कंपनी के द्वारा मेरियन बायोटेक और डिस्ट्रीब्यूटर क्वारा मैक्स मेडिकल के द्वारा उज्बेकिस्तान में लेकिन उज्बेकिस्तान इकलौता ऐसा केस नहीं था। इन खबरों को देखें।

हरियाणा और मध्य प्रदेश में 141 बच्चों की मौत हुई

गाम्बिया और कैमरून में भी कंटेम केड कफ सिरप्स की वजह से बच्चों की मौत हुई, मेरियन बायोटेक के अलावा दो और इंडियन कंपनियों का नाम यहाँ पर आता है। हरियाणा बेस्ड मेड इन फार्मास्यूटिकल्स और मध्य प्रदेश बेस्ड रेमन लैब्स टोटल में 141 बच्चों की मौत हुई और मारियो बायोटेक कफ सिरप्स से संबंधित यहाँ पर 68 बच्चों की मौत हुई। उज्बेकिस्तान में जब यह घटना हुई तो उनकी सरकार ने कदम उठाया। उनकी मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ ने सभी ड्रग्स को बैन कर दिया जो इंपोर्ट किए जा रहे थे। स्‍क्वारा मैक्‍स के डायरेक्‍टर का मेडिकल लाइसेंस भी कैंसल कर दिया गया।

यह डिसाइड किया गया कि जितनी बची हुई दवाइयां इस कंपनी द्वारा बनाई गई हैं, उन्हें डिस्ट्रॉय कर दिया जाएगा। इस कंपनी के 23 लोगों को जेल की सजा भी दी गई, जिनमें से एक भारतीय एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर भी थे। उसे 20 साल की जेल की सजा सुनाई गई। इसके बाद भी इंवेस्टिगेशन की गई और तब पता चला कि इन कंपनियों ने गलत मात्रा में इंग्रेडिएंट्स का इस्तेमाल किया था। मारियो बायोटेक के पास फार्मास्यूटिकल ग्रेड मटेरियल का लाइसेंस नहीं था, इसलिए उन्होंने इंडस्ट्रियल ग्रेड का लाइसेंस ही लिया था। इससे यह फर्क आया कि इंडस्ट्रियल ग्रेड प्रोप्लिन ग्लाइकोल वास्तव में टॉक्सिक होता है और इसका उपयोग विभिन्न उद्योगों में किया जाता है।

कंपनी के खिलाफ FIR भी लॉच

मारियो बायोटेक ने दस साल से अधिक समय से इन कफ सिरप्स को एक्सपोर्ट किया और इन 10 सालों में उन्होंने अपने प्रोप्लिन ग्लाइकोल को टेस्ट नहीं किया था। इस कंपनी के खिलाफ FIR भी लॉच किया गया और उत्तर प्रदेश के अथॉरिटीज ने इस कंपनी का मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस भी रद्द कर दिया। अब इस कंपनी को वापस से अलाव कर दिया गया है।

यहाँ यह अंतर है कि इंडस्ट्रियल ग्रेड प्रोप्लीन ग्लाइकोल वास्तव में जहरीला होता है और इसका उपयोग लिक्विड डिटर्जेंट्स में या पेंट्स और कोटिंग्स में होता है। माया कैमटेक ने अपनी रक्षा के लिए कहा कि उन्हें पता नहीं था कि एक दूसरी कंपनी उनके प्रोप्लीन ग्लाइकोल को वास्तव में कफ सिरप्स में उपयोग कर रही है। मेरियन बायोटेक ने यह क्यों किया, इसके बारे में जिस समय की हेड ऑफ ऑपरेशन थे, उन्होंने रॉयटर्स को कंफेस किया कि कंपनी वास्तव में 10 सालों से अधिक समय से इन कफ सिरप्स को निर्यात कर रही थी, लेकिन इन समयों में उन्होंने कभी अपने प्रोप्लीन ग्लाइकोल को टेस्ट नहीं किया था। फार्मास्यूटिकल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया ने मेरियन बायोटेक का पंजीकरण प्रमाण पत्र दिसंबर 2022 में ही निलंबित कर दिया था।

उत्पादन लाइसेंस मार्च 2023 में रद्द कर दिया

उत्तर प्रदेश के अधिकारी ने इस कंपनी का उत्पादन लाइसेंस मार्च 2023 में रद्द कर दिया था, और तीन कर्मचारियों को गिरफ्तार भी किया गया था। इस कंपनी के दो निदेशकों, सचिन जैन और जे जैन, के खिलाफ एफआईआर भी शुरू हुआ था, लेकिन बाद में तीन कर्मचारियों को जमानत मिल गई और अप्रैल 2023 में उन्हें रिहा कर दिया गया। अलाहाबाद हाईकोर्ट ने सचिन और जया जैन के खिलाफ एनसीआई के बिना गिरफ्तारी के आदेश दिए, जो अक्टूबर 2023 में रिपोर्ट किया गया। इस कंपनी को वापस से अनय कर दिया गया था।

अपनी फैक्ट्री दोबारा खोलने का विचार करते समय पता चला कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 14 सितंबर को एक आदेश जारी किया था। इस आदेश में लिखा गया था कि जो प्रोडक्ट्स इस कंपनी के प्रोप्लिन ग्लाइकोल का इस्तेमाल कर रहे हैं, उनकी विनिर्माण अनुमति नहीं है। लेकिन बाकी सभी प्रोडक्ट्स के निर्माण और विपणन की अनुमति है। यह मामला एक अकेला मामला नहीं है, क्योंकि एक और कंपनी के साथ भी ऐसा हुआ है। सितंबर 2023 की खबर में जम्मू और कश्मीर के उदमपुर जिले में करीब 12 बच्चों की मौत हुई। इनमें से कुछ बच्चों की उम्र सिर्फ दो महीने की थी।

कुछ 1 साल के थे, तो कुछ 2 साल के थे। उनकी मौत हुई क्योंकि उन्होंने एक ऐसी कफ पी, जिसमें डाई इथाइन ग्लाइकोल की बड़ी मात्रा मौजूद थी। इस कफ को डिजिटल विजन फार्मा कंपनी ने बनाया था। जब इसे टेस्ट किया गया, तो पता चला कि इसमें इंडस्ट्रियल ग्रेड केमिकल्स का इस्तेमाल हुआ था। इतने सारे बच्चों की मौत के बावजूद भी, इस केस में चार्जशीट फाइल करने में 3 साल लगे। और इस खबर के अनुसार, इस घटना के 4 साल बाद भी कोई गुनाहगार ठहराया नहीं गया।

The Pharma: दुनिया का सबसे बड़ा स्कैम

इस घटना से पहले, इस डिजिटल विजन फार्मा कंपनी को कई बार चेतावनियां दी गई थी। महाराष्ट्र और गुजरात के ड्रग रेगुलेटर्स ने कम से कम 16 अलग-अलग चेतावनियां दी थीं। इसी तरह कई और कंपनियों को भी इस तरह के आगाह किया गया था। दिसंबर 2023 में, सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने विभिन्न कफ पी सैंपल्स की जांच की और पाया कि 54 फार्मा कंपनियों के कफ पी सैंपल्स ने एक्सपोर्ट क्वालिटी टेस्ट में फेल हो गए। इससे देश की दवा क्षेत्र की उच्चतम प्रतिष्ठा को धकेला गया। इस बात की चर्चा हुई कि सरकार ने कई कदम उठाए होंगे इस प्रश्न को सुलझाने के लिए।

अगस्त 2023 के हिंदुस्तान टाइम्स के आर्टिकल में, पेनल्टी फॉर लो क्वालिटी ड्रग्स पास करने का मुद्दा उठाया गया। सरकार चाहती है कि अगर किसी कंपनी ने लो क्वालिटी की दवाइयां बनाई हैं, तो उस पर बड़ी पेनल्टी लगी जाए। यह पेनल्टी अब थोड़े पैसों में नहीं, बल्कि उनकी जनसंपर्क और विश्वास की भी कमी हो। ड्रग्स कंपनियों द्वारा किए गए मामूली अपराधों को क्रिमिनल घोषित करने की प्रक्रिया जो कानूनी हो गई है, उसके बारे में सार्वजनिक स्वास्थ्य एक्टिविस्ट ने आपत्ति जताई है। वे कहते हैं कि ऐसे मामलों को क्रिमिनल नहीं ठहराया जाना चाहिए। फिर भी, सबसे बड़ी समस्या यह है कि सरकार ने ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के सेक्शन 27 में की गई परिवर्तन से, जिससे लैब टेस्ट्स में असफलता के मामलों को पहले से अधिक सख्ती से निपटने की संभावना है।

लेकिन अब एक आउट ऑफ कोर्ट कॉम्प्रोमाइज ही काफी है यानी कि पैसा दो और मामला रफा-दफा करो ग्लेनमार्क और सिपला इकलौती कंपनीज नहीं है जिन्होंने अपने लैब टेस्ट फेल किए हो और फिर इलेक्टोरल बंड्स के जरिए चंदा डोनेट किया हो महाराष्ट्र के एफडीए ने छह नोटिसेज इशू किए थे हेटेरो कंपनी को सब स्टैंडर्ड्स ड्रग्स के इनमें से तीन इनकी रेम डेस वर दवाई को लेकर थे और बाकी तीन एक एंटीफंगल दवाई एक एक बैक्टीरियल इंफेक्शन की दवाई और एक हिट बोर कैप्सूल थी फॉर्मर जॉइंट कमिश्नर ऑफ ड्रग्स हमें बताते हैं कि अगर कोई कंपनी इतनी वायलेशंस कर रही है- दुनिया का सबसे बड़ा स्कैम,दुनिया का सबसे बड़ा स्कैम

बेशर्मी देखो प्रधानमंत्री मोदी

इस कंपनी का बड़ी ही आसानी से मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस कैंसिल किया जाना चाहिए था लेकिन यहां पर क्या हुआ कंपनी ने चुपचाप इन खराब दवाइयों को वापस लिया और इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदी उस वक्त तेलंगाना में पार्टी पावर में थी बीआरएस हेटेरो ग्रुप ने 120 करोड़ रुपए डोनेट किए BRS को इन इलेक्टोरल बॉन्ड्स के थ्रू इवन जो कंपनी के फाउंडर और चेयरमैन थे उन्हें तो BRS ने राज्यसभा की सीट भी दे दी महाराष्ट्र में 2022 में जब बीजेपी वापस पावर में आई तो इस कंपनी की 15 करोड़ वर्थ ऑफ बंड्स को इन कैश किया बीजेपी ने घोटालों की लिस्ट देख रहे हो दोस्तों कितनी लंबी है इस लेख में मैंने सिर्फ फार्मा रिलेटेड कंपनीज की बात करी है

बेशर्मी देखो प्रधानमंत्री मोदी की जब उनसे इलेक्टोरल बंड्स को लेकर सवाल किया जाता है तो कहते हैं कि थोड़ी इंपरफेक्शन हो गई थी कोई व्यवस्था पूर्ण नहीं होती कमियां हो सकती है उसको कमियों को सुधारा जा सकता है बहाना मारते हैं कि मोदी की वजह से पता चला कि किसको कितनी फंडिंग मिली ये तो मोदी ने इलेक्टोरल बॉन्ड बनाया था इसके कारण आज आप ढूंढ पा रहे हो कि पैसा बॉन्ड किसने लिया कहां दिया कैसे झूठ बोलो बार-बार झूठ बोलो जो भी बोल सकते हैं

झूठ बोलो जहां भी बोल सकते हैं झूठ बोलो

सब झूठ बोलो जहां भी बोल सकते हैं झूठ बोलो इलेक्टोरल बॉन्ड सीक्रेट पॉलिटिकल फंडिंग का एक तरीका था और जब सुप्रीम कोर्ट ने इसे अनकंस्टीट्यूशनल डिक्लेयर किया और स्ट्राइक डाउन किया उसी के बाद ही हमें पता चल पाया कि किसने किसको कितना चंदा दिया सच बात तो यह है कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने इसे अनकंस्टीट्यूशनल ना ठहराया होता तो आपका तो बढ़िया चल रहा था वहां पर्दे के पीछे इस वीडियो के लिए मैं धन्यवाद करना चाहूंगा प्रोजेक्ट इलेक्टोरल बंड का जो कोलैबोरेटिव एफर्ट है न्यूज़ लांड्री स्क्रोल द न्यूज़ मिनट और कई सारे इंडिपेंडेंट जर्नलिस्ट का उन्होंने ये सारी इन्वेस्टिगेशंस करी और रिपोर्ट किया

पैसा दो और मामला रफा-दफा करो: दुनिया का सबसे बड़ा स्कैम

लेकिन अब एक आउट ऑफ कोर्ट कॉम्प्रोमाइज ही काफी है यानी कि पैसा दो और मामला रफा-दफा करो। ग्लेनमार्क और सिपला इकलौती कंपनीज नहीं हैं जिन्होंने अपने लैब टेस्ट फेल किए हों और फिर इलेक्टोरल बंड्स के जरिए चंदा डोनेट किया हो। महाराष्ट्र के एफडीए ने छह नोटिसेज इशू किए थे हेटेरो कंपनी को सब स्टैंडर्ड्स ड्रग्स के इनमें से तीन इनकी रेम डेस वर दवाई को लेकर थे और बाकी तीन एक एंटीफंगल दवाई, एक एक बैक्टीरियल इंफेक्शन की दवाई और एक हिट बोर कैप्सूल थी। फॉर्मर जॉइंट कमिशनर ऑफ ड्रग्स हमें बताते हैं कि अगर कोई कंपनी इतनी वायलेशंस कर रही है तो इस कंपनी का बड़ी ही आसानी से मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस कैंसिल किया जाना चाहिए था।

लेकिन यहां पर क्या हुआ? कंपनी ने चुपचाप इन खराब दवाइयों को वापस लिया और इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदी। उस वक्त तेलंगाना में पार्टी पावर में थी बीआरएस हेटेरो ग्रुप ने 120 करोड़ रुपए डोनेट किए बीआरएस को इन इलेक्टोरल बॉन्ड्स के थ्रू इवन जो कंपनी के फाउंडर और चेयरमैन थे उन्हें तो बीआरएस ने राज्यसभा की सीट भी दे दी। महाराष्ट्र में 2022 में जब बीजेपी वापस पावर में आई तो इस कंपनी की 15 करोड़ वर्थ ऑफ बंड्स को इन कैश किया। बीजेपी ने घोटालों की लिस्ट देख रहे हो दोस्तों, कितनी लंबी है इस वीडियो में। मैंने सिर्फ फार्मा रिलेटेड कंपनीज की बात करी है और बेशर्मी देखो प्रधानमंत्री मोदी की जब उनसे इलेक्टोरल बंड्स को लेकर सवाल किया जाता है तो कहते हैं कि थोड़ी इंपरफेक्शन हो गई थी कोई व्यवस्था पूर्ण नहीं होती, कमियां हो सकती हैं उसको कमियों को सुधारा जा सकता है।

दुनिया का सबसे बड़ा स्कैम, जानिए पूरी जानकारी…

बहाना मारते हैं कि मोदी की वजह से पता चला कि किसको कितनी फंडिंग मिली। ये तो मोदी ने इलेक्टोरल बॉन्ड बनाया था। इसके कारण आज आप ढूंढ पा रहे हो कि पैसा बॉन्ड किसने लिया, कहां दिया। कैसे झूठ बोलो, बार-बार झूठ बोलो, जो भी बोल सकते हैं, सब झूठ बोलो। जहां भी बोल सकते हैं, झूठ बोलो। इलेक्टोरल बॉन्ड सीक्रेट पॉलिटिकल फंडिंग का एक तरीका था और जब सुप्रीम कोर्ट ने इसे अनकंस्टीट्यूशनल डिक्लेयर किया और स्ट्राइक डाउन किया, उसी के बाद ही हमें पता चल पाया कि किसने किसको कितना चंदा दिया। सच बात तो यह है कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने इसे अनकंस्टीट्यूशनल ना ठहराया होता तो आपका तो बढ़िया चल रहा था। वहां पर्दे के पीछे इस वीडियो के लिए मैं धन्यवाद करना चाहूंगा। प्रोजेक्ट इलेक्टोरल बंड का जो कोलैबोरेटिव एफर्ट है न्यूज़ लांड्री स्क्रोल, द न्यूज़ मिनट और कई सारे इंडिपेंडेंट जर्नलिस्ट का। उन्होंने ये सारी इन्वेस्टिगेशंस करी और रिपोर्ट किया।

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