Elon Musk का भारत आना चाहते थे, लेकिन चीन ने उन्हें डराने का प्रयास किया और भारत आने से रोका। भारत ने निश्चित कर दिया है कि 2030 तक 30% गाड़ियां इलेक्ट्रिक होनी चाहिए। अब खबरें बताती हैं कि Elon Musk और मुकेश अंबानी मिलकर भारत में टेस्ला की गाड़ियां बनाएंगे। टेस्ला दुनिया की सबसे पॉपुलर इलेक्ट्रिक गाड़ी है, और अब यह भारत में भी उपलब्ध होगी। यह एक महत्वपूर्ण डेवलपमेंट है। इलॉन मस्क को भारत में कौन-कौन से चुनौतियां मिलेंगी? चीन इस डेवलपमेंट से क्यों डरा हुआ है? और इससे हमें क्या फर्क पड़ेगा? आइए जानते हैं।
आज के लेख में, चैप्टर वन में, चीन का सबसे बड़ा डर क्या है? भारत दुनिया में सबसे लोकप्रिय देशों में से एक है, और भारत में भी इलेक्ट्रिक रेवोल्यूशन की उम्मीद है। इलॉन मस्क ने खुद इसे कहा है, इसलिए उन्हें भारत आना है। टेस्ला कब भारत में आएगी, इसकी घोषणा भी होने वाली है। अनुमान है कि उन्हें भारत में 2 बिलियन डॉलर्स निवेश करना है। यह स्पष्ट है कि इससे चीन को डर है।
Elon Musk के भारत आने से चीन को क्या खतरा है?
2016 तक अमेरिका और चाइना दोनों EV रेस में बराबरी कर रहे थे, लेकिन 2016 के बाद चाइना ने अमेरिका को बहुत बड़ी मार्जिन से पीछे छोड़ दिया है। दुनिया की टॉप 10 EV कंपनियों में से छह चीन में हैं। EV गाड़ियों की बैटरी लिथियम से बनती है, जिसकी 70% रिफाइनिंग क्षमता चीन में है। चीनी कंपनी BYD अब टॉप पर है, और न केवल Musk अपनी Tesla गाड़ियों को वहां बना रहे हैं, बल्कि उन्हें एशियाई बाजारों में भी बेचा जा रहा है। शंघाई में बनने वाली चार में से एक गाड़ी Tesla की होती है।
लेकिन उन्हें यह भी पता है कि चीन एक रिवर्स इंजीनियरिंग देश है। यहां के इंजीनियर बहुत स्मार्ट हैं, और वे किसी भी तकनीक को खोलकर देख सकते हैं कि वह कैसे काम करती है। इसके बाद वे उस तकनीक को कॉपी कर अपनी कंपनियों के लिए उपयोग कर सकते हैं। चीन अब अमेरिका को पीछे छोड़ रहा है क्योंकि यह सिस्टम चीनी कंपनियों को विकसित कर रहा है। ऐसे में चीन को एक वैकल्पिक बाजार ढूंढना जरूरी है। एप्पल ने भी अपना उत्पादन चीन से वियतनाम और भारत में ले जाया है, और Elon Musk भी इस दिशा में आगे बढ़ेंगे। चीन को इससे डर है।
कश्मीर क्षेत्र में बड़ी मात्रा में लिथियम रिजर्व्स मिले
पिछले साल, भारत के जम्मू और कश्मीर क्षेत्र में बड़ी मात्रा में लिथियम रिजर्व्स मिले थे, जिनका उपयोग बैटरियों का निर्माण करने में किया जा सकता है। चीन, एलन मस्क को भारत आने से रोकना चाहता है और उन्होंने इसलिए अपना प्रोपैगेंडा शुरू कर दिया है। भारतीय लोगों को अनस्किल्ड कहना उचित नहीं है क्योंकि सप्लाई चेन सही नहीं है और ओवरऑल एनवायरमेंट बिजनेस के लिए अच्छी नहीं है। यह सुनकर गुस्सा आता है, लेकिन इन बातों को सुनकर डिनायल में चले जाना बहुत आसान है, डिफिकल्ट है उनमें फैक्ट ढूंढ़ना और उससे भी डिफिकल्ट है।
समस्याओं का समाधान ढूंढने के लिए, यदि हम हिस्ट्री की दीर्घावधि देखें, तो भारत में विदेशी कार कंपनियों का अधिकांश समय नाकाम ही रहा है। मित्सुबिशी, शेवरोलेट, फिएट और फोर्ड – ये सभी कंपनियां भारत में गाड़ियां बेचने का प्रयास करीं, लेकिन आज ये हमारे बाजार से गायब हो रही हैं। भारत में व्यापार करना इतना आसान नहीं है। इस स्थिति में, विदेशी कंपनियों का स्थानीय कंपनियों के साथ सहयोग करना आवश्यक है। वे उनके साथ संयुक्त उद्यम कर सकते हैं। या फिर इसी कारण से एलन मस्क और मुकेश अंबानी के साथ टेस्ला भारत आ सकती है।
एलन मस्क और मुकेश अंबानी के साथ टेस्ला
दोनों पक्षों के लिए यह काफी लाभदायक हो सकता है, लेकिन कहां? तीन राज्य बड़े प्रतिस्पर्धी हैं – गुजरात, तमिलनाडु, और महाराष्ट्र। ये तीनों राज्य बड़े पोर्ट हब्स हैं, इसलिए बाहर से सामग्री लाना आसान होगा। तमिलनाडु की बात करें तो पिछले साल देश में 10 लाख इलेक्ट्रिक वाहन बिके थे, जिनमें से 4 लाख सिर्फ़ इस राज्य में बिके। चेन्नई, कोयंबटूर, तिरुचिरापल्ली, मदुरई, सेलम – ये पांच स्थान अच्छे पहचान हैं। गुजरात पिछले 13 सालों में एक ऑटोमोटिव पावरहाउस बन रहा है।
ईवीज के लिए बैटरीज बहुत महत्वपूर्ण होती हैं और इसी बात को ध्यान में रखते हुए, इलन मस्क ने भारत में 2 बिलियन डॉलर्स का निवेश करने की घोषणा की है। हमें कनेक्टिविटी और क्षमता दोनों की जरूरत है। महाराष्ट्र सरकार ने इस बारे में कहा है कि वह एक सिंगल विंडो क्लियरेंस सिस्टम बनाएगी जिससे टेस्ला को बिना किसी संभावित परेशानी के यहां निवेश करने में सहायता मिले।
आपके विचार में, टेस्ला कौन-सी राज्य में अपना बिजनेस आगे बढ़ाना पसंद करेगी?
चैप्टर टू में भारत में एक्साइटिंग क्यों है, और इलन मस्क के लिए भारत में इंटरेस्ट क्यों है? उनके लिए, भारत का बाजार कितना एक्साइटिंग है? भारतीय इकोनॉमिक सर्वे इस बारे में बताता है कि हमारी ईवी मार्केट अगले 6 सालों में 49% CAGR से बढ़ेगी। सरकार ने हाल ही में एक नई ईवी पॉलिसी लाई है जिससे देश एक मैन्युफैक्चरिंग हब बन सकता है, और वहां इन्वेस्ट करने वाले कंपनियों के लिए कुछ खास ऑफर भी हैं। आपको कस्टम्स ड्यूटी कम करने की इस घोषणा में क्या खासियत है?
इस घोषणा में दी गई कस्टम्स ड्यूटी कमी की सूचना विशेष क्यों है? आजकल लग्जरी गाड़ियां भारत में महंगी होती हैं क्योंकि वे पूरी तरह से विदेशी बाजारों से आती हैं, जिसे CBU (कंप्लीट बिल्ट अप यूनिट) कहा जाता है। ये गाड़ियां कंटेनर में भरकर शिप से आती हैं और उन पर 30% से लेकर 125% तक की इंपोर्ट ड्यूटी लगती है।
गाड़ियां कंटेनर में भरकर शिप से आती
लैंबोर्गिनी यूरस अमेरिका में 2.2 करोड़ रुपये में उपलब्ध है, लेकिन भारत में करों के कारण इसकी कीमत 4.2 करोड़ तक पहुंच जाती है। क्या यह कर बहुत ज्यादा है? महंगी गाड़ियों पर कर लगाने के पीछे तीन तरह के तर्क हो सकते हैं। यह प्रॉग्रेसिव टैक्सेशन की एक मिसाल हो सकती है। व्यक्ति जो 4.2 करोड़ की गाड़ी खरीद सकता है, उसके पास अधिक पैसा होता है, और वह किसी भी तरह की आर्थिक समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है। इसलिए, उससे अधिक कर वसूलना 15,000 रुपये की सैलरी वाले व्यक्ति से बेहतर हो सकता है।
स्थानीय उद्योग को नुकसान हो सकता है यदि किसी कंपनी को यहां से गाड़ियां बनाने के बजाय अफ्रीका या अन्य क्षेत्रों में बनाकर बेचने का आसार होता है। यहां एक महत्वपूर्ण बात यह है कि विशेष ब्रांड न होने के बावजूद, कंपनियां भारत में विनिर्माण इकाइयों की स्थापना करती हैं जो नौकरियों का सृजन करती हैं। इसके बदले में, उन्हें आयात कराने पर लगाने की माफी मिल सकती है, जिससे गाड़ी की मूल्य संकीर्ण होती है और इसे अधिक लोकप्रिय बनाने में मदद मिलती है। जितनी कम मूल्य, उतनी अधिक बिक्री, यानी तेज अपग्रेडेशन और इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण में विशेषज्ञता की बढ़ती मांग।
इसी तरह, फेस में वित्तमंत्रालय ने 11500 करोड़ रुपये की सब्सिडी पेश की है, जिसमें 7000 ई-बसेस, 55000 कार्स, 30000 व्हीलर्स, और 10 लाटू व्हीलर्स शामिल हैं। ये सभी बातें एक समृद्ध बेस बनाती हैं।
मस्क को भारत आने के तीन प्रमुख उत्तेजक कारण
एक रिवॉल्यूशन के लिए, अर्थात् एक बड़ा परिवर्तन, इसका मतलब यह है कि इलॉन मस्क को भारत आने के तीन प्रमुख उत्तेजक कारण दिख रहे हैं। पहला, चीन के लिए वैकल्पिक खोजना। दूसरा, भारतीय बाजार को बढ़ावा देना। और तीसरा, भारत सरकार के साथ मिलकर। रिलायंस के लोग नाम के लिए कम्युनिस्ट नजर आते हैं, लेकिन बाजार की बात आते ही, वे चीनी ब्रांड को ही खरीदते हैं। इसका मतलब है कि वे बीएआईडी की बजाय चीनी ब्रांड की गाड़ियां खरीदेंगे। यदि ऐसा हो, तो टेस्ला की चीन में मांग कम होगी और भारत में बढ़ेगी।
रिलायंस क्या है, चलो मैं समझाता हूँ। भारत में, केवल 1% कारों में इलेक्ट्रिक वाहन होते हैं। लोगों से पूछा गया कि इसका कारण क्या है, तो चार मुख्य कारण आए हैं। पहला, इलेक्ट्रिक वाहनों पर टैक्स बहुत अधिक हैं। दूसरा, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में कमी है। तीसरा, इलेक्ट्रिक वाहन सुरक्षित नहीं लगते। और चौथा, वाहन निर्माता कंपनियों के लिए प्रोत्साहन अभाव है। कॉस्ट एक महत्वपूर्ण कारक है, क्योंकि इलेक्ट्रिक वाहनों की आरंभिक लागत अधिक होती है। सरकार इसे कम करने के लिए टैक्स डिडक्शंस प्रदान करती है और इलेक्ट्रिक वाहन पर लोन लेने पर ब्याज भुगतान पर टैक्स क्रेडिट देती है।
पार्किंग की समस्याएं
भारत में बदलाव नहीं होने का मतलब है कि बहुत से लोगों को नुकसान हो रहा है। ज्यादातर लोग बिल्डिंगों में रहते हैं जहां पार्किंग की कमी होती है। अगर उसको सोसायटी में स्थायी पार्किंग चाहिए, तो उसे लाख रुपये देने पड़ते हैं। और अगर उसने अपना घर बेच दिया, तो पार्किंग को नये मालिक को खरीदना पड़ता है। यह देखने में आ रहा है कि गाड़ियों की संख्या बढ़ती है, परंतु पार्किंग की समस्याएं भी बढ़ रही हैं।
लेकिन पार्किंग स्पेस की एक बड़ी समस्या है और जब खुद की पार्किंग नहीं मिलती है, तो खुद के चार्जर को लगाना एक बड़ी चुनौती होती है। तीसरा बिंदु है सुरक्षा। कुछ साल पहले, इलेक्ट्रिक स्कूटर्स को बहुत रोमांचक माना गया था, लेकिन कुछ घटनाएं हुईं जहां उनकी बैटरियों में आग लग गई या फिर स्कूटर बिच मार्ग पर बिना किसी कारण के बंद हो गईं। नॉर्मल मैकेनिक्स इलेक्ट्रिक वाहनों को सहायता नहीं दे सकते क्योंकि उनमें इंजन नहीं होता, बल्कि एक मोटर होता है, इसलिए सुरक्षा और विश्वसनीयता की चिंता बनी रहती है। आज, एक ईवी पर 18% जीएसटी लगता है।
एक ईवी पर 18% जीएसटी लगता है।
यदि इस GST को 5% पर कम कर दिया जाए, तो ईवी के निर्माण लागत में ही कमी आएगी, जिसका प्रभाव गाड़ी निर्माता के साथ-साथ खरीदार पर भी होगा। हम इस साल के पूर्ण बजट में तीसरे चरण की घोषणाओं की प्रतीक्षा कर रहे हैं। अभी तक इंटरिम बजट की घोषणा हो चुकी है, पूर्ण बजट विकल्प का आगमन चुनावों के बाद ही होगा। अंत में, चाइना को भारत में लैंडिंग को रोकने का एक कारण यह है कि भारत चाइना के बाजार को कब्जा करना चाहता है। चाइना के YDP के खिलाफ खड़े होकर, भारत EV बाजार में 90% का हिस्सा बनाने की कोशिश कर रहा है। इसलिए, यदि वैश्विक समय आज़माने का तरीका 100% सही है तो चीनी कंपनियों को भारत में प्रवेश करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
भारत को 2047 तक एक डेवलप देश बनना है
क्योंकि हमारे लोग अनस्किल्ड हैं, हमारे पास अच्छी सप्लाई चेंस है ही नहीं और हमारी एनवायरमेंट बिजनेस फ्रेंडली नहीं है। अगर यह सब सच है तो चाइना भारत क्यों घुसना चाहता है? सच यह है कि सब भारत के इमर्जिंग मार्केट का एक हिस्सा बनना चाहते हैं, टेस्ला भी और चाइना भी। हमें यह देखना है कि हम क्या चाहते हैं और हमारा फायदा कहां है। अगर भारत को 2047 तक एक डेवलप देश बनना है, तो वो मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाए बिना पॉसिबल ही नहीं है।
एआई सर्विस सेक्टर कई जॉब्स को ऑब्सोलेटे कर देगा। आज मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर हमारे जीडीपी का सिर्फ 13% हिस्सा करता है, जबकि चीन में यह नंबर 28% है। चीन हमसे बहुत आगे है, लेकिन बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देश भारत से ज्यादा फास्ट ग्रो कर रहे हैं। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की बात करें तो भारत के टोटल मैन्युफैक्चरिंग का 30% यानी ऑलमोस्ट 1/3 सिर्फ ऑटोमोटिव सेक्टर से आता है, और इस सेक्टर को क्लीन करने की जरूरत है। गाड़ियों के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाना भी इम्पॉर्टेंट है, सिर्फ गाड़ियां बाहर से लाना ही नहीं।
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